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छंद रत्नाकर




छंद रत्नाकर

बढ़ना आगे, पीछे मत मुड़, चलते रहना, सोच समझ कर।
लक्ष्य देखना, कभी न रुकना, गति पकड़ो नित, तप तप तप कर ।
नहीं देखना, इधर उधर तुम, आगे देखो, चलना पग धर।
रोड़ा आये, तो हट जाना, फिर चलाता बन, संभल संभल कर।

मंजिल मिलना, निश्चित संभव, यदि दृढ़ निश्चय, मन में होगा।
काम अधूरा, पूरा होगा, यदि विचलित मन, कभी न होगा।
नियमित पावन, सदा सुहावन, प्रिय मनभावन, लक्ष्य सदा हो।
करता जो नर, शुद्ध आचरण, वही सफल गति, शील अदा हो।

वह पंथी है, सच्चा राही, पंथ बनाता, जो चलता है।
निर्विरोध प्रिय, स्वयं प्रकाशित, सदा चहकता, वह रहता है।
नहीं किसी से, कुछ कहता वह, मौन रूप धर, उन्नति करता।
विश्व समझता, उसे पहेली, नित्य नया वह, सहज निखरता।




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4 Comments

Ayshu

17-Nov-2022 07:06 PM

Nice

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Muskan khan

17-Nov-2022 05:00 PM

Wonderful

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Sachin dev

17-Nov-2022 11:41 AM

Nice 👌

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